राम न थे, न हैं और न होंगे कभी
Posted by Isht Deo Sankrityaayan on September 17, 2007
इष्ट देव सांकृत्यायन
बेचारी केंद्र सरकार ने गलती से एक सही हलफनामा क्या दे दिया मुसीबत हो गई. इस देश में सबसे ज्यादा संकट सच बोलने पर ही है. आप सच के साथ प्रयोग के नाम पर सच की बारहां कचूमर निकालते रहिए, किसी को कोई दर्द नहीं होगा. और तो और, लोग आपकी पूजा ही करने लगेंगे। झूठ पर झूठ बोलते जाइए, किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी. पिछली सरकार के बजट घाटे को आप फिस्कल घाटे की तरह पेश करिए, समिति बैठाकर उससे कहवाइए कि ट्रेन में आग दंगाई भीड़ ने नहीं यात्रियों ने खुद लगाई….. या फिर कुछ भी जो मन आए बकिए; किसी को कोई एतराज नहीं होगा. एतराज अगर होगा तो तभी जब आप सच बोलेंगे.
जैसे केंद्र सरकार ने सच बोला. केंद्र सरकार ने अपने इतने लंबे कार्यकाल में पहली बार सच बोला और मुसीबत हो गई. भाजपा अलग अपनी जंग लग गई तलवारें निकालने लग गई. दादा कामरेड अलग गोलमोल बोलने लग गए. विहिप ने अलग गोले दागने शुरू कर दिए. ये अलग बात है कि सारे गोले बरसात का सीजन होने के नाते पिछले १५ सालों से सीलन ग्रस्त पडे हैं, वरना मैं सोच रहा हूँ कि फूट जाते तो क्या होता. अरे और तो और, साठ पैसे का नमक नौ रूपए किलो बिकने लगा, सवा रूपए का आलू तीस रूपए हो गया, प्याज सवा सौ रूपए किलो पहुच गई, नौकरियाँ खत्म हो गईं, जनता के घरों के मालिक बिल्डर और प्रोपर्टी डीलर हो गए ….. जाने क्या से क्या हो गया, पर हमारे देश की सहनशील जनता एक गाल पर चाटा खाकर दूसरा गाल घुमाती रही. पहले भारतीय राजाओं के ही इतिहासकार, फिर मुग़ल इतिहासकार और फिर अंगरेजों के इतिहासकार ….. सारे के सारे इतिहासकार उसके इतिहास को उपहास बनाते रहे. रही-सही कसर अपने को लबडहत्थी कहने वाले इतिहासकारों ने भी निकाल ली. इसने उफ़ तक न की. वह सत्य की ऎसी-तैसी होते देखती रही और अहिंसा की पुजारी बनी रही.
अब ज़रा सा सच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण वालों ने क्या बोल दिया कि मुसीबत हो गई. ज़रा सा सच संस्कृति विभाग वालों ने क्या बोल दिया आफत आ गई. इन्ही दोनों की सच्चाई को आधार बना कर अदालत के सामने लिखत-पढ़त में एक सच सरकार ने क्या बोल दिया कि जनता ने पूरा देश ही जाम कर दिया. अरे भाई अगर इतने झूठ तुम झेल सकते हो तो एक सच भी झेलने की हिम्मत रखो!
हे जनता जनार्दन, अगर तुम ऐसे ही नाराज होते रहे तो कैसे काम चलेगा? लेकिन अब जनता जनार्दन की भी क्या गलती कही जाए. भला बताइए सच कहीं अदालत में बोले जाने के लिए होता है. अदालत में सच बोलना तो बिल्कुल वैसी ही बात हुई जैसे क्लास में काम की चीज पढ़ाना. जैसे सरकारी दफ्तर में बाबू का काम करना या जैसे प्राइवेट बैंक या मोबाइल कम्पनी का अपने ग्राहकों से किए वादे निभाना. यह बात तो सरकार को समझनी ही होगी कि जैसे गीता सिर्फ सौत के बच्चे की तरह सिर पर हाथ रख कर क़सम खाने के लिए होती है उसी तरह हलफनामा भी सिर्फ झूठ बोले जाने के लिए होता है. हलफनामे में उसे झूठ ही बोलना चाहिए था.
वैसे सरकार अक्सर इस बात का ख़्याल रखती है. चाहे किसानों की जमीन कब्जियानी हो या युवाओं को रोजगार देने की बात हो, महंगाई रोकनी हो या कोई और चुनावी वादा निभाना हो; वह हमेशा सतर्क रहती है कि कहीं गलती से भी कोई बात सही न निकल जाए. पर इस बार रावण जाने ऐसा क्या हुआ (राम नहीं, क्योंकि राम तो थे ही नहीं तो वह जानेंगे कैसे?) कि बेचारी सरकार की मति मारी गई. जरूर यह किसी मंथरा (कैकेयी नहीं, क्योंकि कैकेयी तो राम की सौतेली माँ थीं और अगर माँ थीं तो बेटे के होने की बात भी माननी पडेगी) की चाल होगी.
केंद्र सरकार को अब परमाणु करार की ही तरह इस मुद्दे पर भी एक समिति बना कर बैठा देनी चाहिए। इससे और चाहे कुछ हो या न हो, पर इतना तो होगा ही कि कई बैठे-ठाले सांसदों को कुछ दिनों के लिए रोजगार मिल जाएगा. ये अलग बात है कि सरकार ने माफी मांग ली, पर जनता अभी उसे माफी देने के मूड में है नहीं. भला बताइए कहीं ऐसा होता है कि सरकार ग़लती करे और इतनी जल्दी मान भी जाए? परमाणु करार वाले मुद्दे पर सरकार आज तक डटी है. उदारीकरण के तमाम खतरों को भुगतते हुए भी सरकार आज तक डटी है. आरक्षण का मसला हो या तुष्टीकरण का, हमारी सरकारें पिछले साठ सालों से डटी हैं. आखिर इस मुद्दे में ऐसा क्या था कि सरकार ने इतनी जल्दी मान लिया और सरकार तो क्या! सरकार की मालकिन ने भी माफी मांग ली? मुझे तो अब इस मुद्दे से साजिश की बू आने लगी है.
अरे तुम्हारी समझ में अगर नहीं आ रहा था तो मुझसे पूछा होता. मैने बताया होता। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राम नहीं हैं। असल तो बात यह है कि राम कभी थे भी नहीं और कभी होंगे भी नहीं। हे विहिप और भाजपा के बहकावे में आई हुई जनता जनार्दन! क्या आपको इसके लिए प्रमाण चाहिए कि राम नहीं हैं.
अरे साहब राम नहीं हैं इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि यह सरकार है. एक ऐसे देश में एक ऎसी सरकार जिसमें किसी वैधानिक पद की कोई गरिमा न रह गयी हो, हर बडे पद पर बैठा आदमी अपने को उस पद पर बहुत-बहुत बौना महसूस कर रहा हो, हर पद धारक को उसका पद वैसे ही बे साइज लग रहा हो जैसे दो साल के बच्चे को चाचा चौधरी के साबू का कपडा, देश के सारे बडे पदों पर बैठे लोग अपने को राज्यपाल की सी हैसियत में पा रहे हों और बेचारा राष्ट्रपति खुद हंटर वाली के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहने को मजबूर हो …… तो हे जनता जनार्दन! क्या आपको लगता है कि हमारे देश में एक ऎसी ही सरकार है? अगर हाँ, तब तो तय है कि राम नहीं हैं. इस सरकार का होना यह साबित करता है कि राम नहीं हैं. राम कभी थे भी नहीं और कभी होंगे भी नहीं.
राम नहीं थे, इस बात का प्रमाण वैसे तो भाजपा ने भी दे दिया था. अरे राम अगर रहे होते तो रामसेतु परियोजना को मंजूरी भाजपा कैसे देती? क्या आप भूल गए कि इस परियोजना को मंजूरी वाजपेई जी की सरकार ने ही दिया था? ये अलग बात है कि अब उस पर राजनीती की रोटी भी वही सेंक रहे हैं. और वैसे राम के न होने के सबसे ज्यादा भौतिक प्रमाण तो भाजपा और विहिप ही देती है. भला बताइए राम के नाम उन्होने दंगे कराए और राज्य से लेकर केंद्र तक अपनी सरकारें बना लीं. आप ही से ये वादे कर के कि राम का मंदिर बनाएंगे. कहीं बनाया भी क्या? आपने भले पूछा हो, पर राम ने यह बात आज तक किसी से कभी नहीं पूछी. हे जनता जनार्दन! अगर आपको बदनाम करके कोई बार-बार फायदा उठाता रहे और आपको धेला भी न दे तो बताइए आप क्या करिएगा? …………….. खैर आप जो भी करना चाहें मैंने यह रिक्त स्थान उसी लिए छोड दिया है. अपनी इच्छानुसार भर लें. पर बताइए कि क्या राम ने कुछ किया? कुछ नहीं न! फिर बताइए आप कैसे मान सकते हैं कि राम थे। और वो फिर राम के नाम पर अपनी राजनीतिक दाल गलाने में जुट गए.
हे जनता जनार्दन! प्लीज़ मान जाइए अब आप मेरी बात। राम न थे, न हैं और न होंगे कभी. अरे वो तो रावण थे जिनके नाते हम राम को जानते हैं और बताइए रावण न होते तो इस पुल की चर्चा भी होती क्या? अब तो मुझे लगने लगा है कि रावण ने ही किसी राजनीतिक फ़ायदे के लिए राम की कल्पना की होगी और वाल्मीकि महराज को कुछ खिला-पिला कर ये राम कहानी लिखवाई होगी.
बहरहाल इस पर चर्चा आगे करेंगे. फिर कभी. फ़िलहाल तो आप बस ये मानें कि राम न थे, न हैं और न होंगे. हाँ रावण थे, हैं और बने रहेंगे. तो आइए और बोलिए आप भी मेरे साथ – जय रावण.
जैसे केंद्र सरकार ने सच बोला. केंद्र सरकार ने अपने इतने लंबे कार्यकाल में पहली बार सच बोला और मुसीबत हो गई. भाजपा अलग अपनी जंग लग गई तलवारें निकालने लग गई. दादा कामरेड अलग गोलमोल बोलने लग गए. विहिप ने अलग गोले दागने शुरू कर दिए. ये अलग बात है कि सारे गोले बरसात का सीजन होने के नाते पिछले १५ सालों से सीलन ग्रस्त पडे हैं, वरना मैं सोच रहा हूँ कि फूट जाते तो क्या होता. अरे और तो और, साठ पैसे का नमक नौ रूपए किलो बिकने लगा, सवा रूपए का आलू तीस रूपए हो गया, प्याज सवा सौ रूपए किलो पहुच गई, नौकरियाँ खत्म हो गईं, जनता के घरों के मालिक बिल्डर और प्रोपर्टी डीलर हो गए ….. जाने क्या से क्या हो गया, पर हमारे देश की सहनशील जनता एक गाल पर चाटा खाकर दूसरा गाल घुमाती रही. पहले भारतीय राजाओं के ही इतिहासकार, फिर मुग़ल इतिहासकार और फिर अंगरेजों के इतिहासकार ….. सारे के सारे इतिहासकार उसके इतिहास को उपहास बनाते रहे. रही-सही कसर अपने को लबडहत्थी कहने वाले इतिहासकारों ने भी निकाल ली. इसने उफ़ तक न की. वह सत्य की ऎसी-तैसी होते देखती रही और अहिंसा की पुजारी बनी रही.
अब ज़रा सा सच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण वालों ने क्या बोल दिया कि मुसीबत हो गई. ज़रा सा सच संस्कृति विभाग वालों ने क्या बोल दिया आफत आ गई. इन्ही दोनों की सच्चाई को आधार बना कर अदालत के सामने लिखत-पढ़त में एक सच सरकार ने क्या बोल दिया कि जनता ने पूरा देश ही जाम कर दिया. अरे भाई अगर इतने झूठ तुम झेल सकते हो तो एक सच भी झेलने की हिम्मत रखो!
हे जनता जनार्दन, अगर तुम ऐसे ही नाराज होते रहे तो कैसे काम चलेगा? लेकिन अब जनता जनार्दन की भी क्या गलती कही जाए. भला बताइए सच कहीं अदालत में बोले जाने के लिए होता है. अदालत में सच बोलना तो बिल्कुल वैसी ही बात हुई जैसे क्लास में काम की चीज पढ़ाना. जैसे सरकारी दफ्तर में बाबू का काम करना या जैसे प्राइवेट बैंक या मोबाइल कम्पनी का अपने ग्राहकों से किए वादे निभाना. यह बात तो सरकार को समझनी ही होगी कि जैसे गीता सिर्फ सौत के बच्चे की तरह सिर पर हाथ रख कर क़सम खाने के लिए होती है उसी तरह हलफनामा भी सिर्फ झूठ बोले जाने के लिए होता है. हलफनामे में उसे झूठ ही बोलना चाहिए था.
वैसे सरकार अक्सर इस बात का ख़्याल रखती है. चाहे किसानों की जमीन कब्जियानी हो या युवाओं को रोजगार देने की बात हो, महंगाई रोकनी हो या कोई और चुनावी वादा निभाना हो; वह हमेशा सतर्क रहती है कि कहीं गलती से भी कोई बात सही न निकल जाए. पर इस बार रावण जाने ऐसा क्या हुआ (राम नहीं, क्योंकि राम तो थे ही नहीं तो वह जानेंगे कैसे?) कि बेचारी सरकार की मति मारी गई. जरूर यह किसी मंथरा (कैकेयी नहीं, क्योंकि कैकेयी तो राम की सौतेली माँ थीं और अगर माँ थीं तो बेटे के होने की बात भी माननी पडेगी) की चाल होगी.
केंद्र सरकार को अब परमाणु करार की ही तरह इस मुद्दे पर भी एक समिति बना कर बैठा देनी चाहिए। इससे और चाहे कुछ हो या न हो, पर इतना तो होगा ही कि कई बैठे-ठाले सांसदों को कुछ दिनों के लिए रोजगार मिल जाएगा. ये अलग बात है कि सरकार ने माफी मांग ली, पर जनता अभी उसे माफी देने के मूड में है नहीं. भला बताइए कहीं ऐसा होता है कि सरकार ग़लती करे और इतनी जल्दी मान भी जाए? परमाणु करार वाले मुद्दे पर सरकार आज तक डटी है. उदारीकरण के तमाम खतरों को भुगतते हुए भी सरकार आज तक डटी है. आरक्षण का मसला हो या तुष्टीकरण का, हमारी सरकारें पिछले साठ सालों से डटी हैं. आखिर इस मुद्दे में ऐसा क्या था कि सरकार ने इतनी जल्दी मान लिया और सरकार तो क्या! सरकार की मालकिन ने भी माफी मांग ली? मुझे तो अब इस मुद्दे से साजिश की बू आने लगी है.
अरे तुम्हारी समझ में अगर नहीं आ रहा था तो मुझसे पूछा होता. मैने बताया होता। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राम नहीं हैं। असल तो बात यह है कि राम कभी थे भी नहीं और कभी होंगे भी नहीं। हे विहिप और भाजपा के बहकावे में आई हुई जनता जनार्दन! क्या आपको इसके लिए प्रमाण चाहिए कि राम नहीं हैं.
अरे साहब राम नहीं हैं इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि यह सरकार है. एक ऐसे देश में एक ऎसी सरकार जिसमें किसी वैधानिक पद की कोई गरिमा न रह गयी हो, हर बडे पद पर बैठा आदमी अपने को उस पद पर बहुत-बहुत बौना महसूस कर रहा हो, हर पद धारक को उसका पद वैसे ही बे साइज लग रहा हो जैसे दो साल के बच्चे को चाचा चौधरी के साबू का कपडा, देश के सारे बडे पदों पर बैठे लोग अपने को राज्यपाल की सी हैसियत में पा रहे हों और बेचारा राष्ट्रपति खुद हंटर वाली के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहने को मजबूर हो …… तो हे जनता जनार्दन! क्या आपको लगता है कि हमारे देश में एक ऎसी ही सरकार है? अगर हाँ, तब तो तय है कि राम नहीं हैं. इस सरकार का होना यह साबित करता है कि राम नहीं हैं. राम कभी थे भी नहीं और कभी होंगे भी नहीं.
राम नहीं थे, इस बात का प्रमाण वैसे तो भाजपा ने भी दे दिया था. अरे राम अगर रहे होते तो रामसेतु परियोजना को मंजूरी भाजपा कैसे देती? क्या आप भूल गए कि इस परियोजना को मंजूरी वाजपेई जी की सरकार ने ही दिया था? ये अलग बात है कि अब उस पर राजनीती की रोटी भी वही सेंक रहे हैं. और वैसे राम के न होने के सबसे ज्यादा भौतिक प्रमाण तो भाजपा और विहिप ही देती है. भला बताइए राम के नाम उन्होने दंगे कराए और राज्य से लेकर केंद्र तक अपनी सरकारें बना लीं. आप ही से ये वादे कर के कि राम का मंदिर बनाएंगे. कहीं बनाया भी क्या? आपने भले पूछा हो, पर राम ने यह बात आज तक किसी से कभी नहीं पूछी. हे जनता जनार्दन! अगर आपको बदनाम करके कोई बार-बार फायदा उठाता रहे और आपको धेला भी न दे तो बताइए आप क्या करिएगा? …………….. खैर आप जो भी करना चाहें मैंने यह रिक्त स्थान उसी लिए छोड दिया है. अपनी इच्छानुसार भर लें. पर बताइए कि क्या राम ने कुछ किया? कुछ नहीं न! फिर बताइए आप कैसे मान सकते हैं कि राम थे। और वो फिर राम के नाम पर अपनी राजनीतिक दाल गलाने में जुट गए.
हे जनता जनार्दन! प्लीज़ मान जाइए अब आप मेरी बात। राम न थे, न हैं और न होंगे कभी. अरे वो तो रावण थे जिनके नाते हम राम को जानते हैं और बताइए रावण न होते तो इस पुल की चर्चा भी होती क्या? अब तो मुझे लगने लगा है कि रावण ने ही किसी राजनीतिक फ़ायदे के लिए राम की कल्पना की होगी और वाल्मीकि महराज को कुछ खिला-पिला कर ये राम कहानी लिखवाई होगी.
बहरहाल इस पर चर्चा आगे करेंगे. फिर कभी. फ़िलहाल तो आप बस ये मानें कि राम न थे, न हैं और न होंगे. हाँ रावण थे, हैं और बने रहेंगे. तो आइए और बोलिए आप भी मेरे साथ – जय रावण.
Gyandutt Pandey said
“हाँ रावण थे, हैं और बने रहेंगे. तो आइए और बोलिए आप भी मेरे साथ – जय रावण.” राम-राम! यह क्या कह और बुलवा रहे हैं. 🙂
Neeraj नीरज نیرج said
मैडम का मैनेजमेंट है.. ख़बरदार अगर अपनी आस्था दिखाई तो बीजेपी वाला करार दिए जाओगे। ज़रा इधर भी नज़र डालें. कैमिकल लोचा… हे राम
neeshoo said
“हाँ रावण थे, हैं और बने रहेंगे. तो आइए और बोलिए आप भी मेरे साथ – जय रावण.”मै सहमत हूँ इन साब से
संजय तिवारी said
बड़ी लंबी छुट्टी मना आये. विस्फोट करते हुए लौटे हैं.
संजय बेंगाणी said
ठीक है भाई, आप कहते हो तो सही ही होगा. राम हो ना हो रावण जरूर थे, है और होते रहेंगे.
ALOK PURANIK said
इत्ते दिनों बाद लौटे हैं, और इत्ती लंबी छोड़ेंगे।
राजीव रंजन प्रसाद said
आपने यहाँ वामपंथी इतिहासकारों की उँची-उँची नहीं छोडी, कहीं उनकी भाषा ही तो नहीं….जिसको न निज गौरव यथा…:)
Isht Deo Sankrityaayan said
ज्ञान भैया क्या करें? आप तो समझदार व्यक्ति हैं. हमारी सरकारे ऐसा कह रही है तो हम क्या कहें? अब हम सरकार के खिलाफ थोड़े बोल सकते हैं.
Isht Deo Sankrityaayan said
भाई आलोक जी और संजय जी !बीच में घर बदल दिया तो नेट कनेक्शन भंग हो गया था. और नेट के बिना ब्लोगिन्ग तो हो नहीं सकती. बहरहाल कई दिनों की खुमार अब निकालूँगा. आप लोग झेलने के लिए तैयार रहें.
Arjun said
आप तो इष्टदेव हें। आपकी बात कैसे गलत हो सकती है। सच है राम जी बताएंगे रामजी कभी नहीं थे या नहीं। अर्जुन देशप्रेमी
उमाशंकर सिंह said
हे राम! ये सब कैसी कैसी बातें हो रहीं हैं!
Madhu said
हिन्दि मे खोज!http://www.yanthram.com/hi/हिन्दि खोज अपका सैटु के लिये!http://hindiyanthram.blogspot.com/हिन्दि खोज आपका गुगुल पहेला पेजि के लिये!http://www.google.com/ig/adde?hl=en&moduleurl=http://hosting.gmodules.com/ig/gadgets/file/112207795736904815567/hindi-yanthram.xml&source=imag