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मुंबई में नापतौल की घपलेबाजी

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on November 26, 2008

मुंबई के किराना दुकानों में नापतौल के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक तराजुओं में मामूली सी घपलेबाजी है, लेकिन इससे दुकानदारों को अच्छा खासा लाभ हो रहा है। दुकानदार सामानों के नापतौल में 15 से 20 ग्राम का बट्टा मार रहे हैं। चावाल,दाल और गेहू जैसे खाद्य सामग्री पर इनके द्वारा मारे गये बट्टे को तो कोई खास असर नहीं पड़ रहा है, लेकिन जीरा,लाल मिरच, इलायची, दालचीनी, गोलकी, काजू, किसमिस आदि पर ये लोग 15-20 ग्राम का बट्टा मारकर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं,चूंकि इन सामानों का वजन कम होता है और कीमत ज्यादा।
नापतौल की व्यवस्था पर नजर रखने वाले अधिकारी भी इस बात से अच्छी तरह अवगत हैं कि दुकानदारों ने अपने इलेक्ट्रॉनिक नापतौल की मशीनों गति बढ़ा रखी है। लेकिन दुकानदार इनकी भी जेबे गरम करते रहते हैं, इसलिए ये लोग अपनी इस उपरी कमाई को बंद करना नहीं चाहते हैं। इसके अलावा दुकानदारों से इन्हें कम कीमत पर अपने घरों के लिए महीनवारी सामान भी मिल जाते है।
मीट और मूरगों के दुकानों में इस्तेमाल किये जाने वाले बाटों और तराजुओं में भी 50 से 100 ग्राम के बीच डंडीबाजी चल रही है। ये लोग पैसे चोखे लेकर सामान कम दे रहे हैं। इस मामले में शिकायत करने पर आगे बढ़ो की बात कहकर ग्राहकों का अपमान करने से भी बाज नहीं आते हैं। यहां पर मछली के कई बाजार तो बिन नापजोख के ही चल रहे हैं। आप मछली पसंद कीजिये और उसकी कीमत के मोलभाव में जुट जाइये। एक मछली की कीमत वो 200 सौ से 300 सौ रुपये बताएंगे। यदि मोलभाव में आप माहिर हैं तो यह मछली आपको 50 से 100 रुपये के बीच आपको मिल जाएगी। यह पूरी तरह से आपके मोलभाव के गुण पर निभर करता है।
बड़े-बड़े मॉलों में नापतौल को लेकर तो कोई खास गड़बड़ी नहीं है, लेकिन आद्य-पदाथो को छोड़कर कीचन से संबंधित अन्य सामानों के दाम बहुत ही अधिक है। हालांकि ये सामान आपको ब्रांड का सुकून जरूर देते हैं। वैसे मुंबई की लोयर और मिडिल क्लास आबादी इन मॉलों से दूर ही रहती है। ये लोग मुंबई के गली-कूचों से ही किराना के सामान खरीदने में यकीन रखते हैं। मॉलों में घुसने में ये लोग हिचकते हैं। मुंबई के मिठाई की दुकानों में भी नाम तौल की इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का मीटर फास्ट है।

2 Responses to “मुंबई में नापतौल की घपलेबाजी”

  1. सब गडवड है केसे सुधरेगे हम?

  2. बहुत सही मसला आपने उठाया है आलोक जी और सही पूछिए तो ब्लॉग्गिंग का मूल मकसद भी यही है. शायद हिन्दी में ब्लोगिंग ने अब शक्ल लेना शुरू कर दिया है.

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