अथातो जूता जिज्ञासा
Posted by Isht Deo Sankrityaayan on January 25, 2009
अथातो जूता जिज्ञास्याम:. जी हाँ साहब, तो अब यहाँ से शुरू होती है जूते की जिज्ञासा. आप ठीक समझ रहे है मैं जूता शास्त्र लिखने की ही तैयारी मे हूँ. भारत मे शास्त्रो के लेखन की एक लम्बी परम्परा रही है और सभी शास्त्रो की शुरुआत इसी तरह होती है – अथातो से. अथातो से इस्की शुरुआत इसलिए होती है क्योंकि इससे यह जाहिर होत है कि इससे पहले भी इस विषय पर काफी कुछ कहा जा चुका है और आपसे यह उम्मीद की जाती है कि आप उसके बारे मे काफी कुछ जांनते भी हैं. आप जाने या न जाने, पर मै आपसे इतनी तो उम्मीद कर ही सकता हूँ कि आप कम से कम जूते और शास्त्रो के बारे मे तो जानते ही है.
तो पहले बात शास्त्रो से ही शुरू करते है. भारत मे छ: शास्त्र तो प्राचीन काल से चले आ रहे है, एक सातवाँ शास्त्र इसमे महापंडित राहुल सान्कृत्यायन ने जोडा – घुमक्कड शास्त्र. अन्यथा न ले, मैं उसी परम्परा को आगे बढा रहा हूँ. आप जानते ही है, घूमने के लिए जो चीज़ सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, वह है पैर. पैर मज़बूत और सही सलामत होँ तभी घूमने का पूरा मज़ा लिया जा सकता है. पुनश्च, पैरों को सही-सलामत व मज़बूत बनाए रखने के लिए अनिवार्य है जूता. सही बात तो यह है कि आज की दुनिया मे आपके पास पैर हों या न हों पर जूता होना ज़रूरी है. कोई भी आपके पैर नहीं देखता. देखना चाहे तो भी नहीं देख सकता. क्योंकि पैर तो आपका जूतों के अन्दर सुरक्षित रहता है. उसे कोई कैसे देख सकता है? देखते लोग जूता ही हैं. अव्वल तो सच यह है कि पैर छूने के नाम पर भी अधिकतर लोग छूते भी जूता ही हैं. और आपके पैर में ढंग के ब्रैंडेड जूते न हों तो कोई आपके पैर छुएगा भी नहीं.
तो जूते की कुछ तो महत्ता आपको इतने से ही चल गई होगी. अब हम जूता जिज्ञासा या कहें कि जूता चिंतन की इस प्रक्रिया को आगे बढाते हैं. वैसे जैसा कि मैं पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ, यह जूता चिंतन करने वाला भी मैं कोई पहला महापुरुष नही हूँ. मुझसे पहले इस देश में ऐसे कई महापुरुष हो चुके हैं, जिन्होने गम्भीर और महत्वपूर्ण विषय पर गहन चिंतन-मनन किया है. उनके द्वारा स्थापित की गई इस समृद्ध लेकिन अव्यवस्थित परम्परा को ही मैं आगे बढा रहा हूँ. वैसे मेरा प्रयास और कुछ नहीं, केवल पहले से चली आ रही इस समृद्ध परम्परा को व्यवस्थित देने भर का ही है. सच पूछिए तो इस परम्परा की शुरुआत तो संतों के समय से ही हो गई थी. लेकिन चूँकि ज़्यादातर संत ‘मसि कागद छूयौ नहीं’ वाली परम्परा से सम्बद्ध थे, इसलिए वे इसे शास्त्र का रूप नही दे सके.
वैसे उनके द्वारा इसे व्यवस्थित शास्त्र का रूप न दिए जाने का एक दूसरा कारण भी हो सकता है. असल में ऐसा माना जाता है कि वे पढे-लिखे भले न रहे हों पर त्रिकालदर्शी ज़रूर थे. 20वीं सदी में क्या होने वाला है, ये वे 15वीं सदी में ही जानते थे. शायद वे जानते थे कि 20वीं सदी के भारत में जगह-जगह यूनिवर्सिटियां होंगी. उन यूनिवर्सिटियों में हिन्दी-अंग्रेजी जैसे कई विभाग होंगे. उन विभागों में बडे-बडे डिग्रीधारी जंतु होंगे. ये डिग्रियां उनके सिरों सींगों की तरह काम करेंगी, जिनका इस्तेमाल करते हुए वे जिसे चाहें विद्वान और जिसे चाहें दो कौडी का बेवकूफ साबित कर देंगे. किसी की कापी पर किसी का रोल नम्बर और किसी की थीसिस पर किसी का नाम चिपका देंगे. यह जानते ही वे शुरू मे ही डर गए होंगे कि अगर उन्होने इस शास्त्र को कोई व्यवस्थित रूप दे दिया तो इस पर से उनका नाम तो उकाच दिया जाएगा और उनकी जगह किसी डाक़्टर-प्रोफेसर का नाम चिपका दिया जाएगा. यही वजह है जो उन्होने इसे एक व्यवस्थित शास्त्र का रूप देने के बजाय सिर्फ एक झलक भर देकर छोड दी.
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(बहरहाल, ऐसा लगता है कि जूता चिंतन का यह पोस्ट काफी लम्बा हो रहा है. और अगर यह हनुमान जी पूंछ की तरह बढता गया तो मुझे पक्का यक़ीन है आप इसे पढेंगे नहीं. इससे वैसे ही ऊब जाएंगे जैसे कोर्स की किताबों से छात्र ऊबे रहते हैं. लिहाजा आज यहीं तक. आगे कल पढिएगा. अगली किस्त में.) …………
satyendra... said
किसी को जुतियाने का इरादा है क्या ?
इष्ट देव सांकृत्यायन said
अरे नहीं महराज! हम शरीफ आदमी हैं. ऐसा कैसे कर सकते हैं. कोई संत थोड़े हैं की जूता-चप्पल चलाएं!
नीरज गोस्वामी said
जूते पर लिखने का बहुत पुन्य काम कर रहे हैं…अक्सर लोग कोट पेंट आदि पर लिख कर रुक जाते हैं आप ने जमीन से जुड़ी वास्तु की जानकारी देने का बीडा उठाया है जो स्वागत योग्य है…उन जूतों का भी जिक्र कीजिये जो खाए जाते हैं…नीरज
संगीता पुरी said
अच्छा विषय चुना है लिखने के लिए…..हमारे यहां जूत्ते का महत्व है ही तभी तो शादी में भी सालियों द्वारा जूत्ते चुराए जाते हैं…………..गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
राज भाटिय़ा said
आप भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!आप का यह जूता पुराण बहुत सुंदर लगा
Arvind Mishra said
यह एक डिलेड जूतम पैजार है मगर देर आयद दुरुस्त आयाद !
Udan Tashtari said
इसे भूमिका मान लेते हैं..आप तो आगे जारी रहिये. आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
इष्ट देव सांकृत्यायन said
आदरणीय भाई नीरज जीसबसे पहले गणतंत्र दिवस की बधाई. वैसे मैने शुरुआत जूते के ज़मीन से जुडाव को ही सोच कर की थी और इराक़ी पत्रकार ज़ैदी का जूता उस वक़्त खास तौर से मेरे दिमाग पर चल रहा था. पर बाद में ममला बढता गया. अब जूते के सभी सम्भव आयामों का ज़िक्र होगा.
इष्ट देव सांकृत्यायन said
आदरणीया संगीता जी आपको भी गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं। आपने जूते से जुडे एक अच्छे आयाम की अच्छी जानकारी दी. हालांके मैन खुद इस त्रासदी से गुज़र चुका हूँ, पर ध्यान नहीं रह गया था. अब उसका भी ज़िक्र करेंगे.
इष्ट देव सांकृत्यायन said
आदरणीय भाई राज, अरविन्द और उडन तश्तरी जी!आप सब को गणतंत्र दिवस की बधाई. मेरा उत्साह बढाने के लिए धन्यवाद. जूता शास्त्र की यह व्याख्या आगे जारी रहेगी. बस आप लोग मेरा मनोबल बनाए रखें.
विनीता यशस्वी said
Sahi kaha apne – ek yatri ke liye sabse jaruri uska juta hi hota hai, jiske bagir ek kadam chalna mushkil hai…aapne achha vishay chuna hai. juta shastra ka intzaar rahega.
Gyan Dutt Pandey said
बहुत जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं आप। तभी तो जूते पर लम्बा लेखन का बीड़ा उठा लिये हैं। यह साफ हुआ पढ़ कर कि चरण छुअवाने हैं तो ढंग का जूता खरीद लें। 🙂
विवेक सिंह said
आप सब को गणतंत्र दिवस की बधाई !आप का यह जूता पुराण बहुत सुंदर लगा
अजित वडनेरकर said
ham bahut der se yahan pahunche hain.dhire dhire aage barhte hain.dilchasp…
pradeep dubey said
bada maza aaya.ghar ,office mai log jute bahar utarwa lete hai .Baad mai pahanne mai jo uchal kood karni padti hai vo teriffic haiPradeep Dubey