तुम खुद मिटती हो और खुद बनती हो
Posted by Isht Deo Sankrityaayan on May 27, 2009
समुद्र के छोर पर खड़े होकर लहरों के उफानों को देखता हूं
हर लहर तुझे एक आकार देते हुये मचलती है, तू ढलती है कई रंगों में
दूर छोर पर वर्षा से भरे काले बादलों की तरह तू लहराती है,
और बादलों का उमड़ता घुमड़ता आकार समुंद्र में दौड़ने लगता है
और उसकी छाया मेरी आंखों में आकार लेती है, उल्टे रूप से
विज्ञान के किसी सिद्दांत को सच करते हुये, तू मेरी आंखों में उतरती है
फिर समुंदर और आकाश में अपना शक्ल देखकर कहीं गुम हो जाती है।
ट्राय की हेलना में मैं तुम्हें टटोलता हूं, तू छिटक जाती है
जमीन पर दौड़ते, नाचते लट्टू की तरह, फिर लुढ़क जाती है निढाल होकर
तेरे चेहरे पर झलक आये पसीने की बूंदों को मैं देखता हूं
इन छोटी-छोटी बूंदों में तू चमकती है, छलकती है
इन बूंदों के सूखने के साथ, तुम्हारी दौड़ती हुई सांसे थमती है
ढक देती हैं समुंदर की लहरें तेरे चेहरे को, तू खुद मिटती है और खुद बनती है।
मैं तो बस देखता हूं तुझे मिटते और बनते हुये।
गहरी नींद तुझे अपनी आगोश में भर लेती है
और तू सपना बनकर मेरी जागती आंखों में उतरती है
ऊब-डूब करती, सुलझती-उलझती, आकृतियों में ढलती
पूरे कैनवास को तू ढक लेती है, व्यर्थ कविता की तरह
और अपने दिमाग के स्लेट को मैं साफ करता हूं, धीरे-धीरे
और फिर खुद नींद बनकर जागता हूं तोरी सोई आंखों में
तेरे अचेतन में पड़े बक्सों को खोलता हूं, एक के बाद एक
और लिखकर के काटी हुई पंक्तियों में उलझ जाता हूं…
तुम खुद मिटती हो और खुद बनती हो….कटी हुई पंक्तियां तो कही कहती है।
रंजना said
Sundar Bhavpoorn rachna.
Science Bloggers Association said
मन के भावों को बखूबी बयां करती है यह कविता।-Zakir Ali ‘Rajnish’ { Secretary-TSALIIM & SBAI }
अनिल कान्त : said
बहुत दिनों बाद अच्छी कविता पढने को मिली
AlbelaKhatri.com said
dimag k slet ko saaf karne ka andaz bha gaya, kisi se kahna mat….kavita me maza aa gaya JIYO JIYO JIYO_____________badhaiyan
डॉ. मनोज मिश्र said
बहुत ही सुंदर ,भावपूर्ण पोस्ट .
हिमांशु । Himanshu said
अंतिम कुछ पंक्तियों ने बेचैन कर दिया । आभार इस अर्थपूर्ण रचना के लिये ।
I wonder... said
you’re a perfect observer, but only till the last four lines – when you become a sleuth!परन्तु इस मत के साथ ही ख़याल आया मुझे उस लेखक का जिसकी सबसे उत्तम रचना, जिसमे वो खो जाता है, एक खूबसूरत स्त्री बन के उसके साथ रहने लगती है और उसके जीवन का हिस्सा बन जाती है… “मीनाक्षी” नाम का यह चलचित्र शायद देखा हो आपने…
इष्ट देव सांकृत्यायन said
सिर्फ़ भावपूर्ण नहीं, सृजनधर्म की परछाईं बनाती हुई सी लगती है यह रचना.