और तुम मुस्कराती हो कंटीली टहनियों में….
Posted by Isht Deo Sankrityaayan on June 12, 2009
आधी रात को चुपके से तुम
मेरे कान के पास गुनगुनाती हो,
मौत के बाद जीवन के रहस्यों
की ओर ले जाती हो ।
हौले से अपनी आंखों को बंद करके
मैं मौत के सरहद को पार करता हूं,
गुरुत्वाकर्षण के नियमों को धत्ता बताते हुये
मैं ऊपर उठता हूं, और ऊपर- और ऊपर
शरीर के भार से मुक्त होने पर आर्बिट
के नियम बेमानी हो जाते हैं,
दूर से देखता हूं पृथ्वी को घूर्णन
और परिक्रमण करते हुये,
और रोमांचित होता हूं कुदरत के
कानून से मुक्त होकर ।
मौत के बाद की जीवन की तलाश
ग्रहों और नक्षत्रों के सतह तक ले जाती है,
और उन्हें एक अटल नियम के साथ बंधा पाता हूं
जिसके अनदेखे डोर सूरज से लिपटे हुये है।
रहस्यों के ब्रह्मांड में तुम भी गुम हो जाती हो
और तुम्हारा न होना मुझे बेचैन करता है,
फिर जीवन की तलाश में जलते हुये
सूरज में मैं डूबकी लगाता हूं,
चमकती हुई किरणे मुस्करा के फेंक देती है
मुझे फिर से पृथ्वी के सतह पर।
और ओस की चादर में लिपटी हुई धरातल पर
मैं तुम्हे दूर तक तलाशता हूं,
और तुम मुस्कराती हो कंटीली टहनियों में….
प्रवीण जाखड़ said
achha likhte hain. kalpana ka tana bana lajawab bunte hain.
अनिल कान्त : said
behtreen hai bhai
डॉ. मनोज मिश्र said
अच्छी रचना .
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said
सजीव और सार्थक चित्रण।उत्तम रचना।
ओम आर्य said
रुहे भी अपनी मीत की तलाश जब तक करती है.और यह तलाश तब तक चलती है जब दुसरा साथी ना मिल जाये …..यही कुछ बयान करती हुई आप्की कविता है…..दिल को छू गई…अतिसुन्दर्
अजय कुमार झा said
बहुत ही सुन्दर क्या शब्दों का चयन और अनुपम उपयोग किया है आपने..पढ़ कर मन आनंदित हो गया…
AlbelaKhatri.com said
waah waah atyant manbhaavan kavita .haardik badhaai !
Nirmla Kapila said
भावमय सुन्दर रचना शुभकामनायें
राज भाटिय़ा said
भाव पुर्ण ओर अति सुंदर रचनाधन्यवाद
अशोक पाण्डेय said
सुंदर प्रस्तुति।
हरिशंकर राढ़ी said
A graceful mingling of science, spiritualism and corporal love.hari shanker rarhi
इष्ट देव सांकृत्यायन said
हुम्म्म! राढ़ी जी से पूरी सहमति है.