kaisa chandan
Posted by Isht Deo Sankrityaayan on April 19, 2011
कैसा चन्दन होता है
( यह गज़ल १९९४ में लिखी गई थी और आज अचानक ही कागजों में मिल गई . बिना किसी परिवर्तन, संशोधन के आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ.बीते दिनों का स्वाद लें .)
सूनेपन में कभी- कभी जब यह मन आँगन होता है।
स्मृतियों के सुर-लय पर पीड़ा का नर्तन होता है।
क्या स्पर्श पुष्प का जानूँ, क्या आलिंगन क्या मधुयौवन
जी करता भौंरे से पूछूँ – कैसा चुम्बन होता है।
लोग पूछते इतनी मीठी बंशी कौन बजाता है
ध्वस्त हो रहे खंडहरों में जब भी क्रंदन होता है।
हिमकर के आतप से जलकर शारदीय नीरवता में
राढ़ी ने ज्वाला से पूछा – कैसा चंदन होता है।
प्यार मर गया सदियों पहले, जिस दिन मानव सभ्य हुआ
अब तो उसके पुण्य दिवस पर केवल तर्पण होता है।
भारतीय नागरिक - Indian Citizen said
वाह राढ़ी जी, बहुत सुन्दर लिखा है..
Udan Tashtari said
बहुत उम्दा..वाह! १९९४ में भी कलम में रवानी थी.
प्रवीण पाण्डेय said
प्यादा तो तभी से मरा हुआ है।
इष्ट देव सांकृत्यायन said
प्यार मर गया सदियों पहले, जिस दिन मानव सभ्य हुआअब तो उसके पुण्य दिवस पर केवल तर्पण होता है।अद्भुत. अभिभूत कर देने वाली पंक्तियां हैं.
रंजना said
रचना तो जो है सो है…पर ये पंक्तियाँ…प्यार मर गया सदियों पहले, जिस दिन मानव सभ्य हुआअब तो उसके पुण्य दिवस पर केवल तर्पण होता है।किन शब्दों में प्रशंसा करूँ ????बस वाह वाह वाह…
हरकीरत ' हीर' said
प्यार मर गया सदियों पहले, जिस दिन मानव सभ्य हुआअब तो उसके पुण्य दिवस पर केवल तर्पण होता है।१९९४ में भी कलम में रवानी थी…..:))
नीरज गोस्वामी said
ग़ज़ल का प्रत्येक लफ्ज़ अद्भुत कारीगरी का नमूना है…इस बेजोड़ लेखन पर बधाई स्वीकारें…ग़ज़ल लेखन बंद न करें नियमित लिखें क्यूँ के आपसी प्रतिभा विरलों के पास ही होती है.नीरज
pradeep said
शानदार सर जी आनद आ गया