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जनतवा का जिउ सांसत में है!

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on June 16, 2011

अ से अन्ना हज़ारे क से काला धन ग से गंगा

द से दिग्गी राजा

न से निगमानंद

ब से बयानबाजी

भ से भ्रष्टाचार र से रामदेव

भौत रट लिए यार ये सब. इन सबके बीच में

ख से खाना भ से भूख म से महंगाई ब से बढ़ते ब्याज दर

ई सब भी होते हैं. कौनो नामे नईं ले रहा है इनका……………. बताओ न, का किया जाए???????????????????????????????????????????????????????????????????????
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7 Responses to “जनतवा का जिउ सांसत में है!”

  1. कुछ नहीं हो सकता.

  2. आ से आशा, बस वही सीख रहे हैं।

  3. योग से भ्रष्टाचार मिटाने का समाधान ढूँढना अप्रत्याशित सा लगता है . तथापि इसे आजमाने में कोई बुराई भी नहीं. जब मर्ज़ हद से गुज़र जाता है तो टोने – टोटके तक आजमाने पड़ जाते हैं. इस घोर कलयुग में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक बाबा को उतरना पडा ? बाबा रे बाबा ??????????????

  4. ला से लोभ है लाभुकों को और क्ष से क्षोभ बचा है जनता के लिए…..लेकिन क से करे क्या जनता ,इसके नहीं है सूझ…

  5. इष्ट देव जी की ये रचना अप्रतिम है…बधाई स्वीकारेंनीरज

  6. श्री प्रवीण पाण्डेय जी सही कह रहे हैं.

  7. क का कि की कु कू के कै को कौ कं क:…।स से समस्या ग से गम्भीर है।

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