होली के दिन जनमा
एक नेता का बेटा,
मुसीबत बन गया
चैन से नहीं लेता ?
पैदा होते ही
कमाल कर गया,
उठा, बैठा और
नेता की कुर्सी पर चढ़ गया !
यह देख डॉक्टर घबराई,
बोली – ये तो अजूबा है !
इसके सामने तो
साइंस भी झूठा है !!
इसे पकड़ो और लिटाओ
दुधमुंहा शिशु है, माँ का दूध पिलाओ ।
दूध की बात सुनकर
शिशु ने फुर्ती दिखाई,
पास खड़ी नर्स की
पकड़ी कलाई
बोला – आज तो होली है,
ये कब काम आएगी,
काजू-बादाम की भंग
अपने हाथों से पिलाएगी ।
नेता और डॉक्टर के
समझाने पर भी वह नहीं माना,
चींख-चींखकर अस्पताल सिर पर उठाया,
और गाने लगा ‘शीला’ का गाना !
उसके बचपने में
‘शीला की ज़वानी’ छा गई,
‘मुन्नी बदनाम न हो
इसलिए नर्स भंग की रिश्वत लेकर आ गई !
शिशु को भंग पीता देख
नेताजी घबराये और बोले –
‘तुम कौन हो और
क्यों कर रहे हो अत्याचार ?’
शिशु बोला – तुम्हारी ही औलाद हूँ
और नाम है भ्रष्टाचार
[] आप सबका हुरियारा – राकेश ‘सोहम’
Archive for March, 2011
नाम है भ्रष्टाचार !!!!!! [होली है !]
Posted by Isht Deo Sankrityaayan on March 21, 2011
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Gazel
Posted by Isht Deo Sankrityaayan on March 13, 2011
गज़ल
-हरिशंकर राढ़ी
बन जाए सारी उम्र गुनहगार इस तरह ।
करना न मेरी जान कोई प्यार इस तरह।
सुनता हूँ सकीने पे भी लहरें मचल उठीं
दरिया के दिल पे हो गया था वार इस तरह।
महफिल में गम की आ गए यादों के परिंदे
सूना सा मेरा दिल हुआ गुलजार इस तरह।
उल्फत की जंग में न रहा जीत का जज़्बा
हम एक दूसरे से गए हार इस तरह ।
सपने खरीदते रहे जीवन के मोल हम
चलता रहा इस देश में व्यापार इस तरह।
तनहा गुजारनी थी मुझे रात वो ‘राढ़ी’
मुझमें समा गया था मेरा यार इस तरह।
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