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अटल जी की स्मृति में ई-विश्व कवि सम्मेलन

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on August 20, 2020

मधु [टोरंटो से]

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, कविवर व भारत-रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी की द्वितीय पुण्यतिथि के अवसर पर अखिल विश्व हिंदी समिति, टोरंटो, कनाडा द्वारा आयोजित ई-विश्व कवि सम्मेलन 16 अगस्त 2020 रविवार को प्रातः 10 से सायं 2 बजे (भारतीय समय सायं 7:30 -11:30) तक अद्भुत भाव तरंग, साहित्यिक सौजन्य व आध्यात्मिक संवेदन के साथ संपन्न हुआ।

समारोह की मुख्य अतिथि थीं टोरंटो, कनाडा में भारतीय कोंसलाधीश सम्माननीया अपूर्वा श्रीवास्तव जी। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि थे श्री नानक चन्द, सहायक निदेशक, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार। कार्यक्रम की अध्यक्षता की हिंदी एवं संस्कृति शोध संस्थान व अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, भारत के महासचिव डॉ. श्री भगवान शर्मा जी ने। कनाडा से हिंदी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष व ‘हिंदी चेतना’ के प्रमुख संपादक श्री श्याम त्रिपाठी जी कार्यक्रम के उपाध्यक्ष रहे।

भारत के डॉ. हरिसिंह पाल जी, डॉ. जे.पी.बघेल, डॉ. संजय नवले, डॉ. अमर सिंह व डॉ. ज्योत्सना शर्मा और कनाडा के श्री भगवत शरण श्रीवास्तव विशिष्ट अतिथि थे। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, भारत के अंतर्राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रवीण गुप्ता व उपाध्यक्ष श्री राजेश गर्ग विशेष अतिथि थे।

इस सम्मेलन का आयोजन व संचालन अखिल विश्व हिंदी समिति, आध्यात्मिक प्रबंध पीठ व मधु प्रकाशन, टोरंटो  के अध्यक्ष व हिंदी साहित्य सभा के महासचिव गोपाल बघेल ‘मधु’ ने किया। सहायक संचालक थे फ़्रीडम योगा व संस्कृत योग सभा, कनाडा के अध्यक्ष आचार्य संदीप त्यागी जी।

पहले सभी उपस्थित साहित्यिकार व श्रोता परस्पर परिचय किए। लगभग 50 लोग कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। उपस्थित साहित्यकारों में भारत, कनाडा, अमरीका, इत्यादि देशों से सहभागिता हुई।

कार्यक्रम का आरंभ आचार्य संदीप त्यागी द्वारा काव्य श्रद्धांजलि व श्री गोपाल बघेल ‘मधु’ की रचना, श्रद्धांजलि व श्लोकों, ‘संग्छध्वं सम्बदध्वं..’ मंत्र व ‘ॐ मधुवाता ऋतायते’ इत्यादि से हुआ।

सम्मेलन को पहले प्रमुख अतिथियों श्री नानक चन्द, डॉ. श्री भगवान शर्मा, श्री राजेश जैन, डॉ. प्रवीण गुप्ता, डॉ. हरिसिंह पाल, डॉ. जे.पी. बघेल, डॉ. संजय नवले, डॉ. अमर सिंह व डॉ. ज्योत्सना शर्मा और कनाडा के श्री श्याम त्रिपाठी, श्री भगवत शरण श्रीवास्तव व श्रीचन्द्र कुमार सिंह एक-एक कर सम्मेलन को संबोधित किए! सभी वक्तव्य अटल जी की स्मृति लिए, संदेश भरे व ओजपूर्ण थे।

सम्मेलन के द्वितीय सत्र को मुख्य अतिथि सम्माननीया भारतीय कोंसलाधीश अपूर्वा श्रीवास्तव जी ने संबोधित किया। उन्होंने पूर्व भारतीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के विषय में अपनी स्मृति साँझा की व साहित्य के प्रसार प्रचार के लिए अपनी विशेष प्रतिवद्धता जताई। उन्होंने आयोजक व संचालक श्री गोपाल बघेल ‘मधु’ व अन्य सभी साहित्यकारों को तुरंत कार्यक्रम आयोजित करने के लिए साधुवाद दिया और उनके अनवरत प्रयासों को सराहा व भारतीय कोंसलावास की ओर से हिंदी के विकास व उन्नयन के लिए हरसंभव सहायता देने का आश्वासन दिया।

इसके उपरांत कार्यक्रम में उपस्थित 20 कवियों ने अपनी मार्मिक व मंत्रमुग्ध करने वाली रचनाएँ सुनाकर श्रोताओं का हृदय तरंगित किया।

काव्यपाठ करने वाले कनाडा के प्रमुख कविगण थे सर्वश्री श्याम त्रिपाठी,  भगवत शरण श्रीवास्तव, गोपाल बघेल ‘मधु’, आचार्य संदीप त्यागी, राजमाहेश्वरी जी इत्यादि। कनाडा की कवयत्रियों में थीं सर्वश्रीमती मीना चोपड़ा, श्यामा सिंह,  ऋचा बघेल व राज कश्पय जी।

भारत से काव्यपाठ करने वाले प्रमुख कविगण थे सर्वश्री डॉ. श्री भगवान शर्मा-आगरा,  डॉ. संजय नवले- औरंगाबाद, डॉ. जगन्नाथ प्रसाद बघेल- मुंबई, गजराज सिंह- नोयडा, डॉ. डी. आर. चंद्रा- मेघालय, बाला जी सूर्यवंशी, राजपाल पाल- मथुरा, आदि। भारत से काव्यपाठ करने वाली कवयत्रियाँ थीं श्रीमतीरेखापाण्डेय- पुणे, डॉ. कुमुदबाला मुखर्जी- हैदराबाद, डॉ. रजनी शर्मा चंदा,  रेणु बालाधर- राँची इत्यादि।

साहित्यिकारों एवं वक्ताओं ने अध्यात्म व अन्य विषयों पर अपनी ओजस्वी, सारगर्भित, चेतना संस्फुरित, मधुर कंठों से गाई रचनाएँ व आत्मसंप्रेषण से तरंगित प्रस्तुतियाँ दे सबको आनंदित किया।

भारतीय कौंसलावास टोरंटो  के वरिष्ठ कोंसल श्री देविंदरपाल सिंह जी, डॉ. दाऊजी गुप्ता, डॉ. प्रवीन गुप्ता, डॉ. कैलाश चंद्र भटनागर, आचार्य संदीप त्यागी, श्री चंद्र कुमार सिंह, श्री सेवक सिंह जी इत्यादि का इस आयोजन में विशेष आशीर्वाद रहा। कार्यक्रम में अनेक श्रोता जैसे कि सर्व श्री सेवक सिंह जी, अनिल पुरोहित जी, अजय गुप्ता जी, कुँ. अरण्य बघेल स्वारेज आदि भी उपस्थित रहे।

मुख्य अतिथियों ने साहित्यकारों को हिंदी साहित्य की सेवा करने के लिए सराहा, प्रोत्साहित किया और सहयोग के लिए आश्वस्त किया। पूर्ण मनोयोग से आ. श्री नानकचंद जी की उपस्थिति रही और उनके विचार ववक्तव्य विशेष रूप से प्रेरणास्पद रहे। उन्होंने भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग से हिंदी साहित्य के संवर्धन व प्रचार प्रसार के लिए हरसंभव सहयोग देने का आशीर्वचन दिया।

डॉ. श्री भगवान शर्मा जी का संबोधन हर वर्ष की तरह हृदयों को आह्लादित करने वाला था। उन्होंने व अन्य प्रमुख अतिथियों ने आयोजन की गरिमापूर्ण प्रस्तुति के लिए आयोजक व संचालक श्री गोपाल बघेल ‘मधु’ को धन्यवाद दिया व उनकी आध्यात्मिक व हिंदी साहित्य की सेवाओं की मुक्तकंठ से प्रशंसा की।

25 जुलाई 2020 को ही हमारा 11वां वार्षिक अधिवेशन ‘ई-विश्वकविसम्मेलन’  हुआ था। फिर भी इस कार्यक्रम में भारत, कनाडा व विश्व भर से भरपूर सहभागिता रही। कई प्रकार से यह कार्यक्रम भौतिक रूप से भी अच्छा रहा और यह अद्भुत आध्यात्मिक व साहित्यिक तरंग छोड़ने में सफल रहा।

कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति – भारत, अखिल विश्व हिंदी समिति, सं.रा. अमरीका, कनाडा की हिंदी साहित्य सभा, आध्यात्मिक प्रबंध पीठ, फ़्रीडम योगा, हिंदी प्रचारिणी सभा, विश्व हिंदी संस्थान, इत्यादि संस्थाओं का भरपूर सहयोग मिला। कई व्हाट्सऐप समूहों का पूरा सहयोग व सहभागिता मिली।

सभी कवि व श्रोतागण एवं अतिथियों की ओर से तन-मन-धन व हृदय से मिले प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग के लिए संस्था की ओर से हार्दिक आभार व साधुवाद दिया गया। अंत में साहित्य की सेवा के लिए सभी कवियों, कवयित्रियों, श्रोताओं व सहयोगियों को आयोजकों की ओर से साधुवाद दिया गया।

चलचित्र देखकर इस ‘अटल ई-विश्व कवि सम्मेलन’ का पूरा आनंद आप ले सकते हैं।

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लिखित पठित समरूप है, दृढ़ता का आधार

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on August 19, 2020

नागरी लिपि परिषद के स्थापना दिवस (१७ अगस्त २०२०) पर दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन, सनेही मंडल नोएडा एवं नागरिक परिषद के संयुक्त तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय नागरी लिपि कवि सम्मेलन का आयोजन गूगल मीट के पटल पर परिषद के पूर्व अध्यक्ष डॉ. परमानंद पांचाल की अध्यक्षता एवं कवि अटल मुरादाबादी के कुशल संचालन में किया गया। परिषद के महासचिव डॉ. हरिसिंह पाल ने सभी आमंत्रित कविगण एवं अतिथियों का स्वागत करते हुए उनका परिचय कराया।

  • दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन, सनेही मंडल नोएडा एवं नागरिक परिषद के संयुक्त तत्वावधान में गूगल मीट के पटल पर अंतर्राष्ट्रीय नागरी लिपि कवि सम्मेलन का आयोजन

कार्यक्रम में केलिफोर्निया अमेरिका से नागरी लिपि एवं हिंदी की  समर्पित सेविका प्रो. नीलू गुप्ता, नारनौल (हरियाणा) से डॉ रामनिवास ‘मानव’, देहरादून से डॉ दिनेश चमोला, राजस्थान से फतह सिंह लोढ़ा, पुणे से डॉ. शहाबुद्दीन शेख, महाराष्ट्र से डॉ अरुणा राजेंद्र शुक्ला, डॉ. अशोक द्रोपद गायकवाड, मुंबई से डॉ जे पी बघेल, चेन्नई से डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, प्रयाग से डॉ. अखिलेश आर्येन्दु, रामबिलास जायसवाल, आचार्य रामेश्वर प्रसाद, डिबाई (बुलंदशहर) से डॉ. रजनी सिंह, उज्जैन से महाकवि गंभीरा, नोएडा से विज्ञान व्रत, अटल मुरादाबादी, बाबा कानपुरी, दिल्ली से डॉ. हरिसिंह पाल,  आचार्य अनमोल, डॉ. बृजपाल संत, कवयित्री सुषमा शैली, जय जय राम अरुण पाल, राम किशोर उपाध्याय, गाजियाबाद से कवयित्री शैलजा सिंह, ग्रेटर नोएडा से अरुण कुमार पासवान आदि कवियों ने अपने काव्यपाठ से नागरी लिपि की गौरवपूर्ण स्थिति पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम के संयोजक हास्य कवि बाबा कानपुरी ने सरस्वती वंदना से काव्य पाठ का शुभारंभ करते हुए नागरी पर कविता सुनाते हुए कहा–  लिपियों में लिपि एक श्रेष्ठ देवनागरी है, पुष्ट शुष्ट लिपि कहे सकल जहान है! ब्राम्ही से ये उपजी है गुरुता विशेष, निज देश व विदेश में इसी का गुणगान है।

मंच संचालन करते हुए कवि अटल मुरादाबादी ने कहा—-
व्यवहारिक भी वैज्ञानिक भी, स्वर संकेतों की पालक भी।
पग-पग चलकर संवर्धन से अब मंजिल अपनी पाई है।
देवनागरी कहलाई है॥

डॉ रामनिवास ‘मानव’ ने एक दोहे के माध्यम से नागरी की महिमा का इस तरह बखान किया—
लिखित पठित समरूप है, दृढ़ता का आधार।
स्वर व्यंजन संयोग से, धरती रूप अपार॥

कवि विज्ञान व्रत ने बताया— 
देवनागरी है सरल, सब लिपियों में श्रेष्ठ।
कोई भी लिपि है नहीं, इसके आगे जेष्ठ है॥

डॉ दिनेश चमोला ने नागरी की काव्य मयी व्याख्या कुछ इस प्रकार से की—-
संयुक्ताक्षर स्वर व्यंजन जितने, सब वैज्ञानिक रूप विभाजित।
प्रतिध्वनि हित लिपि चिन्ह  भिन्न हैं, शब्द प्रथक हित वर्तनी है चिन्हित।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ परमानंद पांचाल ने कहा कि नागरी लिपि ब्राह्मी से उत्पन्न दुनिया की सबसे वैज्ञानिक लिपि है। इसमें हम जैसा लिखते हैं वैसा ही पढ़ते हैं, जैसा बोलते हैं वैसा ही लिखते हैं। अत: यह सबसे सरल और वैज्ञानिक लिपि है। भारत की अनेक भाषाओं ने इसे अपनाया है। अगर अन्य भाषाएं भी इसे अपनी लिप के साथ-साथ अपनाएं तो यह पूरे देश को एक सूत्र में बांधने में सक्षम है।

कार्यक्रम के समापन पर नागरी लिपि परिषद के महासचिव डॉ. हरि सिंह पाल ने सभी आमंत्रित साहित्यकारों, श्रोताओं के प्रति अपना आभार व्यक्त किया।

[विज्ञप्ति]

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सद्प्रयास: मरीज के लिए डॉक्टर ने लगाई जान की बाज़ी

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on August 14, 2020

जनार्दन मिश्र
9 अगस्त की रात को जिस समय सब सो रहे थे सूरत में एक दिल को झकझोरने वाली घटना हो गई। यहाँ के एक प्राइवेट अस्पताल में 71 वर्षीय पुरुष को ICU में भर्ती कराया गया था। कोरोना संक्रमित बुजुर्ग को साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी। उनका ऑक्सीजन लेवल (SpO2) लगातार कम होता जा रहा था।

देखते ही देखते उनका ऑक्सीजन लेवल बहुत कम हो गया था। उनको तत्काल वेंटिलेटर सपोर्ट की ज़रूरत थी, लेकिन इसके लिए पहले मरीज़ की श्वास नली में एक Endotracheal tube (ET) डालनी पड़ती है। वहाँ मौजूद डॉक्टर ने ET डालने का प्रयास किया लेकिन उनके लिए यह कार्य मुश्किल हो रहा था। इस प्रक्रिया के लिए एक एक्सपर्ट डॉक्टर (एनेस्थेटिस्ट) की ज़रूरत थी जबकि उनके पास समय बहुत कम था।

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Dr. Sanket Mehta: who went for broke to save a patient’s life

उस समय हालात ऐसे थे कि अगर उस बुजुर्ग मरीज़ को तत्काल वेंटिलेटर सपोर्ट नहीं मिलता तो उनकी जान बचा पाना मुश्किल था। 3 से 4 मिनट के भीतर ऑक्सीजन लेवल सही नहीं हुआ तो उनके दिमाग़ को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ सकता था।
वहाँ ICU में उस समय एक एनेस्थेटिस्ट डॉक्टर मौजूद थे। वो उस बुजुर्ग मरीज़ से केवल दो बेड की दूरी पर भर्ती थे। कोविड-19 से पीड़ित 37 वर्षीय डॉ. संकेत मेहता पिछले दस दिन से वहाँ अपना इलाज करवा रहे थे। उन्हें कमजोरी एवं साँस लेने में दिक़्क़त थी। इसलिए उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था।

वह अपने बेड से इस मरीज़ की हालत देख रहे थे। डॉक्टर होने के नाते उन्हें मौक़े की नज़ाकत समझते देर न लगी। वहाँ मौजूद डॉक्टर और अन्य स्टाफ़ कुछ समझ पाते इसके पहले ही डॉ मेहता अपनी पूरी ताक़त लगा कर अपने बेड से खड़े हो गए। डॉ. संकेत मेहता अपना ऑक्सीजन सपोर्ट हटा कर उस मरीज़ के पास पहुँचे। बिना समय गँवाए उन्होंने उसकी श्वास नली में ET डाल दी। इस तरह डॉ मेहता ने अपनी जान की परवाह किए बिना अपने चिकित्सकीय कर्तव्य का पालन किया।

अस्पताल से ताज़ा जानकारी के अनुसार उस बुजुर्ग मरीज़ की स्थिति अब सामान्य है। डॉ मेहता की तबीयत भी ठीक है। ऐसे उत्कृष्ट योगदान के लिये इस युवा डॉक्टर को नमन!!
© जनार्दन मिश्रा

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बाज़ार की बाढ़ में फंस गया मीडिया

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on November 11, 2009

हमारा समाज आज बाज़ार और मीडिया के बीच उलझता जा रहा है. बाज़ार भोगवाद और मुनाफे के सिद्धांतों पर समाज को चलाना चाहता है, जबकि मीडिया सरकार की आड़ से अब बाजार की बाढ़ में फंस गया है. यह बात जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के वैश्विक अध्ययन केन्द्र के संयोजक प्रो. आनन्द कुमार ने शहीद भगत सिंह कॉलेज में आयोजित एक संगोष्ठी में कही.
बाजार, मीडिया और भारतीय समाजविषयक इस संगोष्ठी में उन्होंने समाज के सजग लोगों से मीडिया और बाजार दोनों की सीमाओं को नये संदर्भ में समझने का आह्वान करते हुए कहा कि अगर ऐसा न हुआ तो लोकतंत्र के वावजूद मीडिया हमारे समाज में विदुर की जैसी नीतिसम्मत भूमिका छोड़कर मंथरा जैसी स्वार्थप्रेरित भूमिका में उलझती जाएगी. मीडिया का बाजारवादी हो जाना भारत के लोकतंत्र को मजबूत नहीं करेगा.
बीते 4 नवंबर को हुई इस संगोष्ठी में शहीद भगत सिंह कॉलेज के प्राचार्य डॉ. पी.के. खुराना ने स्पष्ट किया कि अर्थव्यवस्था में बदलाव के कारण कैसे बाज़ार मजबूत हुआ है और मानवीय मूल्य निरंतर टूटते जा रहे हैं.
भारतीय जनसंचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता के पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. आनन्द प्रधान ने कहा कि समाचार माध्यमों में देशी-विदेशी बड़ी पूंजी के बढ़ते दबदबे के कारण समाचारों के चयन, संग्रह और प्रस्तुति पर बाजार का दबाव बढ़ा है और प्राथमिकताएं बदल गई हैं. समाचारों के डबिंग डाउनके कारण उनमें देश और आम लोगों के दुख-दर्द के लिए जगह लगातार सिकुड़ती जा रही है. समाचार माध्यमों पर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के बढ़ते दबाव के बीच समाचार और विज्ञापन के बीच की दीवार ढह चुकी है और समाचारों की बिक्री और पैकेजिंगकी अलोकतांत्रिक प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है. उन्होंने समाचार माध्यमों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए मीडिया साक्षरता का अभियान शुरू करने पर जोर देते हुए कहा कि मीडिया में संकेंद्रण और एकाधिकारवादी प्रवृत्तियां लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक संकेत हैं.
अध्यक्षीय वक्तव्य में आलोचक प्रो. तिवारी ने कहा कि बाज़ार, मीडिया और टेक्नोलॉजी उत्तर आधुनिक चिंतन के प्रमुख स्रोत हैं. इसमें समाज, इतिहास और विज्ञान का बहिष्करण किया जा चुका है. ये पद आधुनिक चिंतन के थे और इनके सरोकार ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समाज और मनुष्य से सम्बन्धित थे यानी इस चिंतन में सामाजिक और मानवीय सरोकारों का कोई विशेष अर्थ नहीं है. दूसरी बात कि इन स्रोतों (बाजार, मीडिया, टेक्नोलॉजी)ने ज्ञान को जो सबसे महत्वपूर्ण शास्त्र बनाया, वह प्रबंधन का है. ज्ञान के सामाजिक और दार्शनिक संघटकों को आर्थिक उदारवादी भूमण्डलीकरण ने बहिष्कृत कर दिया है. इस ज्ञान प्रक्रिया ने सबसे बड़ा पाठ विज्ञापन का पैदा किया है. विज्ञापन, विज्ञापित वस्तु की असलियत की जिम्मेदारी नहीं लेता. मानवीय इतिहास में पहली बार किसी पाठ का इतना शक्तिशाली रूप सामने आया है जो बिना ज़िम्मेदारी के इतना प्रभावी और इतना मुनाफ़ा देने वाला है. इस उदारीकृत भूमण्डलीकरण के ज्ञान ने मनुष्य को भूमिकाविहीन बनाकर केवल उपभोक्ता जीव में बदल दिया है. इस बुद्धि और ज्ञान शास्त्र का प्रतिरोध ही एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें मानवीय संभावना बच सकती है. सभा का संचालन डॉ. विन्ध्याचल मिश्र ने किया. डॉ. मिश्र ने भी मीडिया पर बाज़ार के बढ़ते प्रभाव एवं उसके सामाजिक आयामों पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े किए.

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