अंजुमन स्याह सा, हर चमन आह सा
दर्द की राह सा मैं रहा क्या करूँ ?
दौड़ते – दौड़ते, देखते – देखते
मंजिलें लुट गईं ,कारवाँ क्या करूँ ?
जिन्दगी -जिन्दगी तू बता क्या करूँ ?
अपनी अर्थी गुजरते रहा देखते
और मैंने ही पहले चढ़ाया सुमन
खुद चिता पर लिटाकर उदासे नयन
रुक गए पाँव लेकर चला जब अगन
पुष्प क्या हो गए , हाय कैसा नमन –
नागफनियों के नीचे दबा था कफन !
अलविदा कर लिया हर ख़ुशी का सजन
रो पड़ीं लकड़ियाँ आंसुओं में सघन
और चिता बुझ गई, कैसे होगा दहन ?
देखकर वेदना यह सिसकती चिता
मरमराने लगी प्रस्फुटित ये वचन –
तुम कहाँ योग्य मेरे प्रणय देवता
लौट जाओ नहीं मैं करूँगी वरण,
हम खड़े के खड़े , मूर्तिवत हो जड़े
दर्द को भेंटते, प्यार को सोचते
शून्य को देखते -देखते रह गए
राख देनी उन्हें थी, खुदा क्या करूँ ?
मंजिलें लुट गईं, कारवाँ क्या करूँ ?