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Archive for the ‘book release’ Category

शब्द का संगीत

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on September 19, 2009

पिछले दिनों सम (सोसायटी फॉर एक्शन थ्रू म्यूजिक) और संगीत नायक पं0 दरगाही मिश्र संगीत अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक सुरूचिपूर्ण सादगी भरे समारोह में पद्मभूषण डा0 शन्नो खुराना ने दो महत्वपूर्ण सांगीतिक ग्रंथों का लोकार्पण किया. पहली पुस्तक भारतीय संगीत के नये आयामपं0 विजयशंकर मिश्र द्वारा संपादित थी, जबकि दूसरी पुस्तक पं0 विष्णु नारायण भातखंडे और पं0 ओंकारनाथ ठाकुर का सांगीतिक चिंतन डा0 आकांक्षी (वाराणसी) द्वारा लिखित. इस अवसर पर आयोजित पं0 दरगाही मिश्र राष्ट्रीय परिसंवाद में विदुषी शन्नो खुराना, पं0 विजयशंकर मिश्र (दिल्ली), मंजुबाला शुक्ला (वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान), अमित वर्मा (शान्ति निकेतन), डा0 आकांक्षी, ऋचा शर्मा (वाराणसी) एवं देवाशीष चक्रवर्ती ने संगीत शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तकों की भूमिका विषय पर शोधपूर्ण सारगर्भित व्याख्यान दिए.

पं0 विजयशंकर मिश्र ने परिसंवाद की रूपरेखा स्पष्ट करते हुए बताया कि सबसे पहले प्रयोग होता है, फिर उस प्रयोग के आधार पर शास्त्र लिखा जाता है और फिर उस शास्त्र का अनुकरण दूसरे लोग करते हैं. अक्षर शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने बताया कि जिसका क्षरण न हो वह अक्षर है. मंजुबाला शुक्ला ने भरत मुनि, शारंगदेव, नन्दीकेश्वर, दत्तिल और अभिनव गुप्त आदि की पुस्तकों का हवाला देकर स्पष्ट किया कि पुस्तकों की भूमिका कभी भी कम नहीं होगी. इस समारोह में प्रो0 प्रदीप कुमार दीक्षित नेहरंग को संगीत मनीषी एवं मंजुबाला शुक्ला को नृत्य मनीषी सम्मान से पद्मभूषण शन्नो खुराना ने सम्मानित किया.

परिसंवाद की अध्यक्षता कर रहीं रामपुर-सहसवान घराने की वरिष्ठ गायिका विदुषी डा0 शन्नो खुराना ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि इसमें कोई शक़ नहीं है कि संगीत गुरूमुखी विद्या है. लेकिन इसमें भी कोई शक़ नहीं होना चाहिए कि संगीत के क्षेत्र में पुस्तकों की भूमिका को कभी भी नकारा नहीं जा सकता है. डा0 खुराना ने लोकार्पित पुस्तक भारतीय संगीत के नये आयाम की और उसके संपादक पं0 विजयशंकर मिश्र तथा उनके द्वारा स्थापित दोनों संस्थाओं-सोसायटी फॉर एक्शन थ्रू म्यूजिक (सम) और संगीत नायक पं0 दरगाही मिश्र संगीत अकादमी (सपस) की प्रशंसा की. उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक की भूमिका पद्मभूषण डा0 शन्नो खुराना ने लिखा है. इस समारोह में विदुषी शन्नो खुराना का अभिनंदन किया गया. कार्यक्रम का संचालन पं0 विजयशंकर मिश्र ने किया.

( पंडित अजय शंकर मिश्र से मिली सूचनानुसार)

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चेहरा-विहीन कवि नहीं हैं दिविक रमेश : केदार

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on September 8, 2009


कविता संग्रह ‘गेहूं घर आया है’ का दिल्ली में लोकार्पण
‘आधुनिक हिंदी कविता में दिविक रमेश का एक पृथक चेहरा है. यह चेहरा-विहीन कवि नहीं है बल्कि भीड़ में भी पहचाना जाने वाला कवि है. यह संकलन परिपक्व कवि का परिपक्व संकलन है और इसमें कम से कम 15-20 ऐसी कविताएँ हैं जिनसे हिंदी कविता समृद्ध होती है. इनकी कविताओं का हरियाणवी रंग एकदम अपना और विशिष्ट है. शमशेर और त्रिलोचन पर लिखी कविताएं विलक्षण हैं. दिविक रमेश मेरे आत्मीय और पसन्द के कवि हैं.’ ये उद्गार प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह ने किताबघर प्रकाशन से सद्य: प्रकाशित कवि दिविक रमेश के कविता-संग्रह गेहूँ घर आया है के लोकार्पण के अवसर पर कहे। विशिष्ट अतिथि केदारनाथ सिंह ने इस संग्रह को रेखांकित करने और याद करने योग्य माना. कविताओं की भाषा को महत्वपूर्ण मानते हुए उन्होंने कहा कि दिविक ने कितने ही ऐसे शब्द हिंदी को दिए हैं जो हिंदी में पहली बार प्रयोग हुए हैं. उन्होंने अपनी बहुत ही प्रिय कविताओं में से ‘पंख’ और ‘पुण्य के काम आए’ का पाठ भी किया.
इस संग्रह का लोकर्पण प्रोफेसर नामवर सिंह, प्रोफेसर केदारनाथ सिंह और प्रोफेसर निर्मला जैन ने समवेत रूप से किया. कार्यक्रम की मुख्य अतिथि निर्मला जैन को यह संग्रह विविधता से भरपूर लगा और स्थानीयता के सहज पुट के कारण विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण भी लगा. उन्होंने माना कि इस महत्वपूर्ण कवि की ओर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था उतना नहीं दिया गया. स्वयं मैं नहीं दे पाई थी. उन्होंने ध्यान दिलाया कि केवल ‘गेहूँ घर आया है’ ही में नहीं, बल्कि जगह-जगह इनकी कविताओं में ‘दाने’ आए हैं. दिविक रमेश के पास एक सार्थक और सकारात्मक दृश्टि है साथ ही वे सहज मानुश से जुड़े हैं. ऐसा नहीं लगता कि इस संग्रह में उनकी आरंभिक कविताएँ भी हैं. सभी कविताएँ एक प्रौढ़ कवि की सक्षम कविताएं हैं. एक ऊँचा स्तर है. न यहाँ तिकड़म है और न ही कोई पेच. दिविक रमेश किसी बिन्दू पर ठहरे नहीं बल्कि निरन्तर परिपक्वता की ओर बढ़ते चले गए हैं.

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर नामवर सिंह ने कहा कि वे किसी बात को दोहराना नहीं चाहते और उन्हें कवि केदारनाथ सिंह के विचार सर्वाधिक महत्वपूर्ण लगे. उन्होंने यह भी कहा कि वे केदारनाथ सिंह के मत पर हस्ताक्षर करते हैं. उनके अनुसार एक कवि की दूसरे कवि को जो प्रशसा मिली है उससे बड़ी बात और क्या हो सकती है. संग्रह की ‘तीसरा हाथ’ कविता का पाठ करने के बाद उन्होंने कहा कि दिविक की ऐसी कविताएँ उसकी और हिन्दी कविता की ताकत है और यही दिविक रमेष है. ऐसी कविता दिविक रमेष ही लिख सकते थे और दूसरा कोई नहीं. इनकी शैली अनूठी है. उन्होंने माना कि इस संग्रह की ओर अवश्य ध्यान जाएगा. कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रेम जनमेजय ने आरंभ में दिविक रमेश को उनके जन्मदिन की पूर्व-संध्या पर सबकी ओर से बधाई दी. उन्होंने कहा कि दिविक उन्हें इसलिए पसंद हैं कि उनमें विसंगतियों को इंगित करने और उन पर सार्थक प्रहार करने की ताकत है. उनकी कविताओं में घर-पड़ोस के चित्र, गाँव की गंध है तो शहर की विसंगतियां भी हैं. दिविक की सोच व्यापक है. अपने आलेख पाठ में दिनेश मिश्र ने कहा कि जिन राहों से दिविक गुजरे हैं वो अटपटी हैं. कवि कहीं भी उपदेशक के मुद्रा में नहीं दिखाई देता है. प्रोफेसर गोपेश्वर ने इन कविताओं को बहुत ही प्रभावषाली मानते हुए कहा कि ये कविताएं खुलती हुई और संबोधित करती हुई हैं. अकेलेपन या एकान्त की नहीं हैं.
दिविक रमेश ने काव्य-भाषा में एक नई परंपरा डाली है. उसे रेखांकित किया जाना चाहिए. उन्हें ये कविताएँ बहुत ही अलग और अनूठी लगीं. उन्होंने इस बात का अफसोस जाहिर किया कि इस समर्थ एवं महत्वपूर्ण कवि की ओर इसलिए भी अपेक्षित ध्यान नहीं गया क्योंकि साहित्य जगत के उठाने-गिराने वाले मान्य आलोचकों ने इनकी ओर ध्यान नहीं दिया था. सार्वजनिक जीवन की ये कविताएँ निष्चित रूप से अपना प्रभाव छोड़ती हैं. उन्होंने अपनी अत्यंत प्रिय कविताओं में से एक ‘पंख से लिखा खत’ का पाठ भी किया.
प्रताप सहगल के अनुसार दिविक कभी पिछलग्गू कवि नहीं रहा और उनके काव्य ने निरंतर ‘ग्रो’ किया है. ये कविताएँ बहुत ही सशक्त हैं. प्रणव कुमार बंदोपाध्याय ने संग्रह की तारीफ करते हुए बताया कि वे इन कविताओं को कम से कम 15 बार पढ़ चुके हैं. उनके अनुसार इन कविताओं में समय के संक्रमण का विस्तार मिलता है. संग्रह को उन्होंने हिन्दी कविता की उपलब्धि माना. यह आयोजन भारतीय सांस्कृति संबंध परिषद और व्यंग्ययात्रा के संयुक्त तत्वावधान में आजाद भवन के हॉल में सम्पन्न हुआ. इस अवसर पर अनेक सुप्रसिद्ध साहित्यकार और गणमान्य पाठक उपस्थित थे. प्रारंभ में भारतीय सांस्कृति संबंध परिषद के अजय गुप्ता ने सबका स्वागत किया.

(व्यंग्य-यात्रा के संपादक प्रेम जनमेजय से मिली सूचनानुसार)

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