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Archive for the ‘kavita’ Category

बेरुखी को छोडि़ए

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on August 29, 2010

रतन

प्यार है गर दिल में तो फिर
बेरुखी को छोडि़ए
आदमी हैं हम सभी इस
दुश्मनी को छोडि़ए

गैर का रोशन मकां हो
आज ऐसा काम कर
जो जला दे आशियां
उस रोशनी को छोडि़ए

हैं मुसाफिर हम सभी
कुछ पल के मिलजुल कर रहें
दर्द हो जिससे किसी को
उस खुशी को छोडि़ए

प्यार बांटो जिंदगी भर
गम को रखो दूर-दूर
फिक्र आ जाए कभी तो
जिंदगी को छोडि़ए

गुल मोहब्बत के जहां पर
खिलते हों अकसर रतन
ना खिलें गुल जो वहां तो
उस जमीं को छोडि़ए

जानते हैं हम कि दुनिया
चार दिन की है यहां
नफरतों और दहशतों की
उस लड़ी को छोडि़ए

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शहनाई भी होएगी

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on September 4, 2009

रतन

फूलों की महकेगी खुशबू
पुरवाई भी होएगी
तारों की बारातें होंगी
शहनाई भी होएगी

पतझड़ बाद बसंती मौसम
का आना तय है जैसे
दर्द सहा है तो कुछ पल की
रानाई भी होएगी

कोई नहीं आया ऐसा जो
रहा सिकंदर उम्र तलक
इज्जत होगी शोहरत के संग
रुसवाई भी होएगी

तन्हा रहते गुमसुम गुमसुम
पर यह है उम्मीद हमें
कुछ पल होगा साथ तुम्हारा
परछाई भी होएगी

मैंने जाना जीवन-दुनिया
सब कुछ आनी-जानी है
सुख का समंदर भी गुजरेगा
तनहाई भी होएगी

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रुदन

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on August 7, 2009

रुदन
एक कला है
और
आंसू एक कलाक्रिति .
कुछ लोग
इस कला के मर्मज्ञ होते हैं
उन्हें
शास्त्रीय रुदन से लेकर
पॅ।प रुदन का
विचित्र अभ्यास होता है .
यदा –कदा
कुछ अंतर्मुखी भी होते हैं
जो
नज़रें बचाकर रोते हैं
इस कला को
आत्मा की भागीरथी से धोते हैं.
किंतु,
’वास्तविक’ कलाकार
गुमनाम नहीं होना चाहते
उन्हें ज्ञान है-
कला का मूल्य होता है,
अतः
अपनी डबडबाई
ढलकती, छ्लकती आंखों के
खारे जल को
‘सहानुभूति‘ की कीमत पर
बेच देते हैं,
फिर
नया स्टॅ।क लाते हैं
और मैं
कलाहीन
उन्हें देखता रहता हूं
बस
आंखों में कुछ लिए हुए.

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