इष्ट देव सांकृत्यायन
देश के दुश्मनों की बात करें तो अभी तक आप केवल पाकिस्तान के नाम पर भरमाए जा रहे थे. 1962 के बाद भी आपके ही हुक्मरानों ने आपके सामने चीन का ऐसा हव्वा बना रखा था कि देश के भीतर मौजूद शल्य यानी देश के दुश्मन आपको चीन के नाम पर चिढ़ाते थे. भला हो डोकलाम और गलवान का जिसने आपको चीन की असली औकात बता दी.
हम आप यही मानते रह जाते कि चीनी पिस्सू हमारी जासूसी के मामले में टुच्चे अर्बन नक्सलों के भरोसे बैठे हुए हैं. शायद यह बात इन चिरकुटों को भी पता न हो कि चीन जैसे चिरकुट विश्वासघाती देश अपने बाप पर भी भरोसा करना नहीं जानते. उसने इनके पीछे भी न मालूम कितने जासूस लगा रखे हों.
ये बेचारे जो एक-एक बात पर बिलबिलाते हैं, उससे भी यही पता चलता है कि इन्हें बताया कुछ नहीं जाता, सिर्फ कोंचा जाता है. यह उस कोंचने का नतीजा है जो पप्पू सुप्रीम कोर्ट की लात खाने के बाद भी ‘चौकीदार चोर’ रेंकता रहता है और अर्बन नक्सल तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर फेसबुक -ट्विटर और व्हाट्सएप तक झूठ का बफर स्टॉक दौड़ाते रहते हैं.
अर्धसत्य इन चीकटों का सबसे बड़ा हथियार है. सोवियत संघ के दिनों से. रोने की हालत यह है कि अगर नदी पर पुल न बना हो तो ये रोएंगे कि जी देखिए तीन आदमी की आबादी वाले इस गाँव को कितनी परेशानी है. लोगों को सुबह पाँच उठकर आठ बजे निकल जाना पड़ता है. तब जाकर ये बेचारे 9 बजे स्कूल पहुँच पाते हैं. और अगर पुल बन जाए तो इस बात पर रोते फिरेंगे कि देख रहे हैं, ये क्या हो रहा है. मोदी जी की सरकार ने करोड़ों की लागत से अंबानी जैसे पूँजीपतियों के लिए पुल बनवा दिया. अब बताइए इन 3 नाविकों का क्या होगा जिनकी रोजी-रोटी का एकमात्र जरिया यही छोटी सी नाव है? जरा सोचिए, अब कौन इन्हें पूछेगा.
ख़ैर, अभी तक आपके सामने सबसे बड़े दुश्मन के तौर पर पापिस्तान को खड़ा किया गया था और आपके मन में यह डर बैठाया गया था कि भारत कभी इस लायक होगा ही नहीं कि वह चीन से आँख मिला सके. सोचिए, ऐसा क्या केवल उस 90 लाख रुपये के लिए किया गया होगा जो राजीव गांधी फाउंडेशन के खाते में दर्ज पाए गए? और कितनी बड़ी रकम किन-किन मध्यमों से आई, कौन जानता है!
जान लीजिए, इन्हीं माध्यमों में एक हवाला भी है और हवाला रैकेट केवल खाड़ी देशों से नहीं चलता. चीन का अपना एक हवाला है और ये हवाला शेल कंपनियों के मार्फत चलता है. ऐसी ही किसी शेल कंपनी के हत्थे चढ़ा था अलीगढ़ का एक युवक राहुल. उसका सच क्या है, यह सामने आने में अभी समय लगेगा… लेकिन इन कंपनियों का सच जानने के लिए आपको जाननी होगी करीब बीस दिन पुरानी एक खबर.. जिसे शायद लोगों ने बहुत हल्के में लिया है. इतने हल्के में अखबार वालों ने उसकी फॉलो अप तक करने की जरूरत नहीं समझी.