गोरी को बहकाने
फाल्गुन आया रे ।
रंगों के गुब्बारे
फूट रहे तन आँगन,
हाथ रचे मेंहदी के
याद आते साजन ॥
प्रेम-रस बरसाने
फाल्गुन आया रे ।
यौवन की पिचकारी
चंचल सा मन,
नयनों से रंग कलश
छलकाता तन ॥
तन-मन को भरमाने
फाल्गुन आया रे ।
[] राकेश ‘सोहम’