कर दिया जो वही आचरण हो गया ।
लिख दिया जो वही व्याकरण हो गया ।
गोश्त इन्सान का यूं महकने लगा
जिंदगी का निठारीकरण हो गया ।
क्योंकि घर में ही थीं उसपे नज़रें बुरी
द्रौपदी के वसन का हरण हो गया ।
उस सिया को बहुत प्यार था राम से
पितु प्रतिज्ञा ही टूटी , वरण हो गया ।
‘राढ़ी ‘ वैसे तो कर्ता रहा वाक्य का
वाच्य बदला ही था, मैं करण हो गया ।
कल भगीरथ से गंगा बिलखने लगी
तेरे पुत्रों से मेरा क्षरण हो गया । ।