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समकालीन अभिव्यक्ति का रामदरश मिश्र पर एकाग्र अंक

Posted by Isht Deo Sankrityaayan on August 15, 2020

हरिशंकर

हमारे समय के वरिष्ठतम साहित्य मनीषी प्रो. रामदरश मिश्र आज अपने जीवन के 96 वर्ष पूरे कर 97वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। मिश्र जी के जीवन का लगभग डेढ़ दशक का समय छोड़कर शेष समस्त जीवन उच्च कोटि की साहित्य साधना वाला जीवन रहा है। अपनी साहित्य साधना के क्रम में  उन्होंने कविता, कहानी, गज़ल, उपन्यास, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, आत्मकथा, ललित निबंध, डायरी और आलोचना जैसी हर विधा में प्रचुर एवं महत्त्वपूर्ण साहित्य रचा। ऐसे साहित्यमनीषी विरले ही होते हैं जो उच्च साहित्यिक मूल्यों को लेकर चलते रहते हैं और बिना किसी पूर्वाग्रह या प्रवंचना के अपना कार्य करते जाते हैं। मिश्र जी के 97वें जन्मदिवस पर समकालीन अभिव्यक्ति अपना ‘रामदरश मिश्र एकाग्र’ (अंक 63-64, जनवरी-जून, 2020) अंक लेकर आई है।

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के चलते उत्पन्न अभूतपूर्व संकट और उससे बरती जा रही सावधानी के अंतर्गत हुए लॉकडाउन के कारण इस अंक की मुद्रित प्रति अभी नहीं आ पाई है। अतः मिश्र जी के जन्मदिवस पर हम इस अंक को सोशल मीडिया और वेबसाइट के माध्यम से हिंदी साहित्य के पाठकों, उनके स्नेही मित्रों एवं लेखकों तक पहुंचा रहे हैं।

यह अंक 124 पृष्ठों का 

सामान्यतया समकालीन अभिव्यक्ति के अंक 64 पृष्ठों के होते रहे हैं। मिश्र जी पर एकाग्र यह अंक 124 पृष्ठों का है। कोरोना के संकट के चलते पहले लॉकडाउन और बाद में सामाजिक दूरी के प्रतिबंधों, डाक की अनुपलब्धता एवं कई कारणों से तमाम लेखकों और यहाँ तक मिश्र जी से मिलना भी असंभव हो गया। इस रहस्यमय बीमारी के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन तक को ठीक ठीक जानकरी न होने के चलते इसे लेकर तमाम भ्रम पूरे व्याप्त हैं, वह अलग। परिणाम यह हुआ है कि हर स्तर पर किसी भी व्यक्ति से संपर्क कर पाना बेहद कठिन रहा। ऐसी स्थिति में सामग्री एकत्र करना, लिखवाना एवं पत्रिका की डिजाइन और संपादन बहुत चुनौतीपूर्ण था। फिर भी हमने प्रयास किया। ऐसी स्थिति में संपादकीय दायित्व का निर्वाह और भी कठिन हो जाता है। 

रचनात्मक वैविध्य 

इन सारी परिस्थितियों के बावजूद समकालीन अभिव्यक्ति की टीम मिश्र जी रचनाधर्मी व्यक्तित्व के ही अनुरूप वैविध्यपूर्ण अंक निकालने का अपना संकल्प निभाने में सफल रही। निश्चित रूप से यह पाठकों के स्नेह का ही परिणाम है। अंक में मिश्र जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बहुआयामी प्रसार पर स्तरीय सामग्री देने का प्रयास किया गया है। हर क्षेत्र, हर विधा एवं हर आयुवर्ग के लेखकों से मिश्र जी पर आलेख लिखवाए गए। 

इस अंक के प्रमुख आकर्षण 

परिचर्चा, जिसमें चंद्रेश्वर, डॉ. संदीप अवस्थी, रामबाबू नीरव, अमरनाथ, प्रेम कुमार आदि हिंदी के कई प्रमुख साहित्यकारों प्रो. रामदरश मिश्र एवं उनके सृजनकर्म पर अपने स्पष्ट विचार रखे हैं। 

एक तो उम्र की अपनी मुश्किलें और दूसरे संपर्क के सारे साधनों का कट जाना, ठप पड़ जाना… ऐसी स्थिति में मिश्र जी का साक्षात्कार करना कितना कठिन होता, इसका अनुमान आप लगा सकते हैं। फिर भी दूरभाष, इंटरनेट और लिखित संप्रेषण के जरिये इस कार्य को संभव बनाया इष्ट देव सांकृत्यायन ने। वह साक्षात्कार आप पाएंगे इस अंक में।

संपादक मंडल द्वारा चयनित रामदरश मिश्र जी की प्रतिनिधि रचनाओं के अलावा इस अंक में उन पर केंद्रित ओम धीरज, हरिशंकर राढ़ी, सविता मिश्र, भारत यायावर, प्रकाश मनु, राधेश्याम तिवारी, पांडेय शशिभूषण ‘शीतांशु’, वैद्यनाथ झा, वेद मित्र शुक्ल के लेख तथा सरस्वती मिश्र, अपूर्वा मिश्रा एवं माया मिश्रा के संस्मरण भी आप पढ़ सकेंगे। 

समीक्षा और समीक्षात्मक लेखों में – गुरुचरण सिंह, वेदप्रकाश अमिताभ, रघुवीर चैधरी, अंजली उपाध्याय, नरेश शांडिल्य, दीपक मंजुल, ओम निश्चल, हरिशंकर राढ़ी।

प्रो0 मिश्र जी पर एकाग्र अंक का पीडीएफ आज मिश्र जी के जन्मदिवस पर सादर समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। हमारी शुभकामना है की मिश्र जी दीर्घायु एवं स्वस्थ रहें। जब तक अंक की मुद्रित प्रति नहीं आती है, इस अंक को पत्रिका की वेवसाइट पर जाकर पढ़ा जा सकता है। 

वेबसाइट का पता और लिंक यहाँ दिया जा रहा है: 

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